Saturday, July 21, 2007

गुलज़ार की त्रिवेणियाँ

Got hold of some real beautiful verses from the master....they are reproduced below verbatim..

१. माँ ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझको
आज की रात वह फुटपाथ से देखा मैंने

रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे।

२ सारा दिन बैठा, मैं हाथ में लेकर खाली कासा (भिक्षापात्र)
रात जो गुज़री, चांद की कौड़ी डाल गयी उसमें

सूदखोर सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।

३ सामने आये मेरे, मुझसे बात भी की
मुस्कुराये भी, पुरानी किसी पहचान की खातिर

कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया।


४ शोला सा उतरता है मेरे जिस्म से हो कर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुमको

तिनकों का घर है, कभी आओ तो क्या हो?

५ ज़मीं भी उसकी, ज़मीं की नेमतें भी उसकी
ये सब उसी का है, घर भी ये घर के बन्दे भी

खुदा से कहिये कभी वो भी अपने घर आयें!

६ लोग मेलों मे भी गुम हो के मिले हैं बारहा
दास्तानों के किसी दिलचस्प से एक मोड़ पर

यूँ हमेशा के लिए भी कोई बिछड़ता कोई?

७ आप की खातिर हम लूट भी ले आसमाँ
क्या मिलेगा चांद चमकीले शीशे तोड़ के

चाँद चुभ जाएगा तो उंगली में तो ख़ून आ जाएगा

८ पौ फूटी है और किरणों से कांच बजे हैं
घर जाने का वक़्त हुआ है, पांच बजे हैं

सारी शब् घड़ियाल ने चौकीदारी की है

९ बे-लगाम उड़ती है कुछ ख्वाहिशें दिल में
मेक्सिकन फिल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे

थान पर बांधी नहीं जातीं सभी ख्वाहिशें मुझ से।

१० तमाम सफहे किताबों के फ़ड़फड़ाने लगे
हवा धकेल के दरवाज़ा आ गयी घर में

कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो।

११ कभी-कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है
कीमत ठीक थी, पर जेब में इतने दाम नहीं थे

ऐसे ही एक बार मैं तुमको हार आया था।

१२ वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर एक दिन
जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ ना था

फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।

१३ वह जिस सांस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा
दबा के दांत तले सांस काट दी उसने

कटी पतंग का मांझा पूरे मुहल्ले में लूटा!

१४ कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा
कोई साथ आया था, उन्हें ले गया, फिर नहीं लौटे
शेल्फ से निकली किताबों की ज़गह खाली पड़ी है।

१५ इतनी लंबी अंगड़ाई ली लड़की ने
शोले जैसे सूरज पर हाथ लगा

छाले जैसा चाँद पड़ा है उंगली पर!

१६ बुद बुद करते लफ्ज़ों को चिमटी से पकड़ो
फेंको और मसल दो एड़ी से

अफवाहों को खूँ पीने की आदत है।

१७ चूड़ी के टुकड़े थे, पैर में चुभते ही खूँ बह निकला
नंगे पाँव खेल रहा था, लड़का अपने आंगन में

बाप ने कल दारु पी के माँ की बाह मड़ोड़ी थी।

१८ चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग नज़र आते है
रोड़े, पत्थर और गुल्लों से दिनभर खेला करता था

बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!

१९ कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं
आंख के शीशे चटखे हुये हैं कब से

टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझको!

२० कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं
पिछले चंद महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं

क्लर्क हैं दोनों, लगता है अब शादी करने वाले हैं।

२१ कुछ इस तरह ख़्याल तेरा जल उठा की बस
जैसे दियासलाई सी जली हो अँधेरे में

अब फूँक भी दो, वरना ये उंगली जलायेगा।

२२ काँटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टाँगे हैं
ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाया है

क्यों इस फौजी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।

२३ आओ बाँट लें अब अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझाना है

दो अनपढ़ों को कितनी मुहब्बत है अदब से!

२४ नाप के वक़्त भरा जाता है, रेत घड़ी में
एक तरफ खली हो ज़ब फिर से उलट देते हैं उसको

उम्र ज़ब खतम हो , क्या मुझको वो उलटा नहीं सकता?

२५ तुम्हारे होठ बहुत खुश्क रहते हैं
इन्ही लबों पे कभी ताज़ा शेर मिलते थे

ये तुमने होंठों पे अफ़साने रख लिए कब से?

And if you have enjoyed reading so far, let me know which one(s) you happen to like most.

1 comment:

Anonymous said...

all of them are beautiful :)